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    Monday, 8 November 2010

    Hindi Love Shayari

    न जाने कब से हैं सहरा कई बसाए हुए
    हुई हैं मुद्दतें, आंखों को मुस्कुराए हुए
    ये माहताब न होता, तो आसमानों पर
    सितारे आते नज़र और टिमटिमाए हुए
    समंदरों की भी नश्वो-नुमा हुई होगी
    ज़माना राज़ ये सीने में है छुपाए हुए
    हर एक दिल में खलिश क्यों है एक मुब्हम सी
    नक़ाब चेहरे से है वक्त क्यों हटाए हुए
    इस इंतज़ार में आयेंगे फिर नए पत्ते
    शजर को अरसा हुआ पत्तियां गिराए हुए
    हवा के झोंकों में हलकी सी एक खुश्बू है
    तुम आज लगता है इस शहर में हो आए हुए
    गुलाब-रंग कोई चेहरा अब कहीं भी नहीं
    ज़मीं पे अब्र के टुकड़े हैं सिर्फ़ छाए हुए
    लगे हैं ज़ख्म कई दिल पे संगबारी में
    के लोग सर पे हैं तूफ़ान सा उठाए हुए
    किताबें पढ़के नहीं होती अब कोई तहरीक
    जुमूद अपने क़दम इनमें है जमाए हुए
    परिंदे जाके बलंदी पे, लौट आते हैं
    के इन के दिल हैं नशेमन से लौ लगाए हुए
    अजीब थे वो मुसाफ़िर, चले गए चुपचाप
    दिलों में अब भी कहीं हैं मगर समाए हुए
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